शरीर में रक्त ताप एवं रोग प्रतिरोधक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होता है। अतः रक्त शुद्धि से शरीर की प्रतिकारात्मक शक्ति बढ़ती है। रक्त विकार सभी रोगों का प्रमुख कारण होता है। अतः यदि किसी सरल प्रभावशाली विधि द्वारा रक्त में से उसके विकारों को अलग कर दिया जाये तो अनेक रोगों से राहत मिल सकती हैं।
सूर्यमुखी तेल की विशेषताएँ-
चीनी पंचतत्त्व के सिद्धान्तानुसार रक्त का संबंध ताप ऊर्जा से होता है और उसमें विकार आने से रक्त-प्रवाह प्रभावित होने लगता है। रक्तचाप बराबर नहीं रहता। सूर्यमुखी तेल में विटामिन ए, डी तथा ई अधिक मात्रा में होने से इसके सेवन से रक्त में कोलस्ट्रोल जैसे विकार की वृद्धि नहीं होती। अतः आधुनिक चिकित्सक हृदय एवं रक्तचाप के रोगियों को घी के स्थान पर सूर्यमुखी तेल का भोजन में उपयोग करने का परामर्श देते हैं। आयुर्वेद के अनुसार सूर्यमुखी का तेल कफ एवं वात-नाशक होता है। त्वचा के विकार, खुजली, दाद एवं कोढ दूर करने में सहायक होता है। खाने में स्वादिष्ट व पचने में आसान होता है।
तेल में भी आजकल शुद्धता संदिग्ध होती है। तेल शुद्धिकरण के नाम पर प्रायः ऐसे रासायनिक पदार्थों का मिश्रण होता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। अतः बिना छानबीन सूर्यमुखी के तेल का खाने में उपयोग भी हृदय रोगियों के लिये लाभदायक नहीं होता, अपितु कभी-कभी हानिकारक भी हो सकता है। बाह्य प्रयोग द्वारा भी सूर्यमुखी तेल का लाभ उपचार हेतु बिना किसी दुष्प्रभाव विशेष विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
तेल गंडूस का प्रभाव-
मुंह में तेल भरकर घुमाने की प्रक्रिया को तेल गंडूस कहते हैं। सूर्यमुखी तेल में सूर्य की ऊर्जा के विशेष गुण होते हैं। जिस प्रकार चुम्बक लोहे को आकर्षित करता है, फिटकरी पानी से गंदगी अलग करती है, ठीक उसी प्रकार सूर्यमुखी तेल में रक्त के विकारों को रक्त से अलग करने की क्षमता होती है। एक चम्मच सूर्यमुखी तेल को मुँह में भरकर 15 से 20 मिनट अन्दर ही अन्दर घुमाने से चेहरे की समस्त मासपेशियां सक्रिय होने लगती है। रक्त भी सारे शरीर में लगभग 15 से 20 मिनट में परिभ्रमण का एक चक्र पूर्ण कर लेता है। चेहरे, जीभ और दाँतों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से सीधा होता है। अतः जब रक्त मुँह की नाड़ियों से होकर गुजरता है तो जिस प्रकार चुम्बक लोहे को खिंचता है उसी प्रकार सूर्यमुखी तेल अपने स्वभाव के कारण रक्त में से उपस्थित रोगाणुओं और विकारों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है और रक्त-शुद्धि में सहयोग करता है। परिणामस्वरूप रक्त-विकार संबंधी सभी रोगों में लाभ होता है।
त्वचा संबंधी रोगों का मुख्य कारण प्रायः रक्त में खराबी होता है। अतः उसमें भी इस प्रयोग से शीघ्र लाभ होता है। दांतों का संबंध शरीर में सभी हड्डियों से होता है। अतः तेल गंडूस से जोड़ों के दर्द में भी विशेष लाभ होता है। इस प्रक्रिया से थायराइड ग्रन्थि संबंधी रोग भी ठीक होते हैं, चेहरे की कान्ति बढ़ती है, स्वर सुधरता है, त्वचा की शुष्कता दूर होती है, भोजन में रुचि तथा स्वादों के प्रति सजगता बढ़ती है। कण्ठशोध, होठों का फटना, दाँतों का हिलना एवं दाँतों संबंधी रोगों में भी तेल गंडूस से बहुत लाभ होता है। इस चिकित्सा में रोग के निदान की आवश्यकता नहीं होती। स्वस्थ व्यक्ति भी यदि इस प्रयोग को नियमित करें तो सभी प्रकार के रक्त-विकार संबंधी रोगों के होने की संभावनाएँ कम हो जाती हैं। अतः स्वस्थ और रोगी दोनों तेल गंडूस का लाभ उठा सकते हैं। उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, हृदय रोग, सफेद दाग, सोरायसिस, दाद, खुजली आदि चर्म-रोगों एवं रक्त-विकार संबंधी अन्य रोगियों को यह प्रक्रिया कुछ सप्ताह तक दिन में दो से तीन बार करनी चाहिये। कुछ ही दिनों के प्रयोग से चमत्कारी परिणाम सामने आने लग जाते हैं।
15 से 20 मिनट उपयोग के पश्चात् तेल विकृत हो जाता है। अतः उसे ऐसे स्थान में थूकना चाहिए जिसे तुरन्त स्वच्छ किया जा सके। तेल को जहाँ भी डालें उस स्थान को एकदम साफ कर लें। अन्यथा उस तेल की गंध से जीवजन्तु उसका सेवन कर मर सकते हैं। साथ ही जीभ और दांतों को भी पानी से स्वच्छ कर लेना चाहिये।
रूस के डाॅक्टर कराच ने भी 1991 में न्यूयार्क में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कैंसर अधिवेशन में सूर्यमुखी तेल के दिन में 2-3 बार गंडूस द्वारा मात्र तीन से छः मास के अन्दर रक्त कैंसर जैसे रोग के उपचार की पुष्टि की है। उन्होंने सैकड़ों सभी प्रकार के रक्त सम्बन्धित रोगियों पर प्रयोग करने के पश्चात् अनुभव किया कि उपर्युक्त विधि से तेल गंडूस द्वारा सिरदर्द, दमा, रक्तचाप, पक्षाघात, हृदयाघात, गुर्दें एवं आतों के रोगों में, दाँत, रक्त एवं त्वचा संबंधी रोगों में चंद दिनों के प्रयोग से ही अच्छे चमत्कारी परिणाम आते हैं। उन्होंने पाया कि इस प्रयोग से सभी प्रकार के कैंसर का फैलाव न केवल कम होता है, अपितु इसके नियमित एवं निरन्तर प्रयोग से पूरा ठीक भी किया जा सकता है। इसका मूल कारण रक्त शुद्धि ही होता है। अतः तेल गंडूस से सभी रोगों में लाभ होता है क्योंकि सभी रोगों के प्रारम्भ में रक्त के विकार प्रमुख कारण होते हैं।
कहने का सारांश यही है कि तेल चिकित्सा सहज, सरल, सस्ती, स्वावलम्बी, अहिंसक, दुष्प्रभावों से रहित, प्रभावशाली तथा शरीर के अनेकों प्रत्यक्ष-परोक्ष रोगों में लाभ पहुँचाने वाली होती है।