क्यों पढ़े आरोग्य आपका   ?

स्वस्थ रहें या रोगी?: फैसला आपका

स्वावलम्बी अहिंसक चिकित्सा

( प्रभावशाली-मौलिक-निर्दोष-वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धतियाँ )

सभी रोगों की एक दवा: शिवाम्बु


स्वास्थ्य का अमूल्य खजाना: मानव मूत्र

                शिवाम्बु घर का दवाखाना है, जहाँ प्रायः सभी रोगों की दवा उपलब्ध होती है। शिवाम्बु घर का अस्पताल है जहाँ अधिकांश रोगों का प्रभावशाली उपचार होता है। शिवाम्बु घर का डाॅक्टर है, क्योंकि उसमें रोग के अनुसार दवा का परामर्श देने का चिकित्सकीय गुण होता है। घर में ही रोग निदान केन्द्र है, क्योंकि शिवाम्बु उपचार करते समय रोग के निदान हेतु परीक्षणों की आवश्यकता नहीं होती। शिवाम्बु स्वयं द्वारा स्वयं के स्वास्थ्य का सुरक्षा कवच है, क्योंकि शिवाम्बु के सेवन से वायरस प्रभावहीन हो जाते हैं। वृद्धावस्था के लक्षण समय के पूर्व प्रकट नहीं होते। बच्चों को रोग निरोधक टींके लगाने की आवश्यकता नहीं होती। 

                मानव शरीर अपने आप में परिपूर्ण होता है। इसमें अपने आपको स्वस्थ रखने की क्षमता होती है। आवश्यकता है अपनी क्षमताओं को पहचानने, समझने की तथा आवश्यकतानुसार उसका सही उपयोग करने की। अज्ञान अथवा अधूरा ज्ञान एवं उसके साथ एक पक्षीय ज्ञान का पूर्वाग्रह तथा अपनी-अपनी पद्धतियों पर सम्यक् चिन्तन के अभाव में आवश्यकता से अधिक विश्वास, अधिकांश असफल उपचारों का मुख्य कारण होता है।

रोग अनेक दवा एक

                दुनियां में रोग मुक्त करने के लिए हजारों दवाईयां उपलब्ध हैं, जिनका रोगों की रोकथाम, उपचार एवं परहेज के रूप मंे उपयोग किया जाता है। सभी दवाओं का शरीर के अंगों पर अपना अलग-अलग प्रभाव अथवा दुष्प्रभाव पड़ता है। आंख के रोगों की दवा कान में नहीं डाली जा सकती। नाक में डालने वाली दवा मुंह से नहीं ली जा सकती। परन्तु शिवाम्बु बिना किसी दुश्प्रभाव, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, स्वयं के द्वारा स्वयं के शरीर से अनेक रोगों की आवश्यकतानुसार निर्मित ऐसी दवा है, जिसका उपयोग चाहें कान हों या आंख, नाक हों या मुंह, त्वचा के रोग हों अथवा शुद्धि के लिए दिए जाने वाला एनिमा ही क्यों न हो अथवा स्वस्थ अवस्था मंे रोगों के बचाव हेतु और रोगावस्था में उसके निवारण के लिए सभी परिस्थितियों में बेहिचक प्रयोग में लिया जा सकता है। इसी कारण शिवाम्बु का नियमित सेवन करने वाला किसी भी छूत की बीमारी हों अथवा किसी संक्रामक रोग से प्रभावित नहीं होता। फिर वह रोग प्लेग, चेचक, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लु, एन्थ्रेक्स या इबोलो जैसा अन्य कोई रोग।

शिवाम्बु हानिकारक तत्व नहीं

                आज वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि शिवाम्बु शरीर से गुर्दो द्वारा रक्त के शुद्धिकरण से प्राप्त जीवनोपयोगी जल का वह भाग है, जिसमें शरीर के लिए उपयोगी सैंकड़ों ऐेसे तत्त्व होते हैं, जो रक्त में होते हैं परन्तु जिनका शरीर तत्काल उपयोग नहीं कर पाता और उनको संचय करने तथा रखने के लिए शरीर में अलग व्यवस्था नहीं होने से उसको विसर्जित करना पड़ता है। ऐसे उपयोगी तत्व जो आवश्यकता से ज्यादा होते हैं, शिवाम्बु के माध्यम से शरीर के बाहर चले जाते हैं।

                शिवाम्बु गंदा, खराब, विषैला, हानिकारक, विजातीय तत्त्व नहीं है, अपितु स्वास्थ्यवर्द्धक, जीवनोपयोगी, शरीर द्वारा निर्मित रासायनिक प्रयोंगों द्वारा बना जल है। शिवाम्बु में सैकड़ों उपयोगी खनिज, रसायन, हारमोन्स, एन्जाईम्स, विटामीन, क्षार, पोषक तत्त्व, विष नाशक पदार्थ तथा रोग निवारक, पीड़ा को शान्त करने वाले, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता और ताकत बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं, जो निष्क्रिय अंगों को सक्रिय बनाने, रक्त के शुद्धिकरण, पाचन एवं श्वसन तंत्र जैसे विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को सुव्यवस्थित नियिन्त्रित और संतुलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दवाओं के उत्पादन में शिवाम्बु का प्रयोग

                शिवाम्बु में उपकारक तथा रोग प्रतिकारक ऐसे निर्दोष रासायनिक तत्त्व मिले हैं जो रोगी और निरोगी दोनों के लिये उपयोगी होते हैं। फलस्वरूप विश्व के आधुनिक दवा निर्माताओं ने शिवाम्बु से प्राप्त जीवनोपयोगी आवश्यक तत्त्वों तथा अन्य भौतिक तत्त्वों के योग से कैन्सर, एड्स, टी.बी., हृदय रोग, दमा, नपुसंकता, गुर्दा आदि के असाध्य रोगों के उपचार हेतु बहुमूल्य प्राणदायिनी दवाइयों और इंजेक्शनों का व्यापक पैमाने पर निर्माण प्रारम्भ कर दिया है। हृदय रोगियों को दिया जाने वाला Urokine, जो महिलाएँ गर्भवती नहीं होती, उनके लिए दी जाने वाली Profasi तथा अन्य असाध्य रोगों के लिए उपयोगी Serocruption, Bromocriptione, Meprate, Ukidon, Pergonal (11mg) Metrodin HP Urofollitrophin (FHS) आदि अनेक दवाईयों के निर्माण में शिवाम्बु का प्रयोग होता है।

सौन्दर्य प्रसाधनों में शिवाम्बु का प्रयोग

                शिवाम्बु सर्वोत्तम एन्टीबायोटीक, सेविंग क्रीम, सेविंग का साबुन, दाढ़ी बनाने के लिए कार्य में आने वाला साबुन तथा बाद में उपयोग में लिया जाने वाला सेव-लोशन, बालों को मुलायम बनाने वाला शैम्पू, दांतों को साफ करने वाला दंत मंजन है। इसी कारण विदेशों में सौन्दर्य प्रसाधनों तथा दंत मंजनों में शिवाम्बु का प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। आज सौंदर्य प्रसाधन के नाम पर जीवों पर जो निर्दयता, क्रूरता, हिंसा हो रही है, उन सबका शिवाम्बु एक मात्र सस्ता, सुन्दर, प्रभावशाली दुष्प्रभावों से रहित अहिंसक विकल्प है।

शिवाम्बु से रोग निदान

                स्वाद हीन, सुगंध हीन, प्रातःकालीन प्रथम विसर्जित होने वाला शिवाम्बु अच्छे पाचन एवं स्वास्थ्य का प्रतीक होता है। शिवाम्बु चिकित्सा में रोग के निदान की भी आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि शरीर में रोगों की आवश्यकतानुसार ही इसका निर्माण होता है। इसी कारण रोगी को जहाँ तक हों, अपने शिवाम्बु का ही सेवन करना चाहिये, भले ही मधुमेह के कारण मूत्र में सुगर अथवा कैंसर आदि रोगों के कारण, उसमें पस अथवा बदबू भी क्यों नहीं आती हो?

शिवाम्बु के प्रयोग की विधियाँ

                शिवाम्बु का प्रयोग अलग-अलग रोगों में अथवा रोगों के रोकथाम हेतु अलग-अलग ढंग से किया जाता है। पीने के लिये प्रातःकालीन प्रथम शिवाम्बु सर्वश्रेष्ठ होता है। रात में निद्रा में व्यक्ति अपने मानवीय स्वभाव में ही होता है। कोई व्यक्ति कितना भी क्रूर, हिंसक, क्रोधी, निर्दयी, अशान्त क्यों न हो, निद्रा में तो वह शांत और तनाव मुक्त ही होता है। अतः उस समय शरीर में जो हारमोन्स के निर्माण होते हैं, वे विशेष स्वास्थ्य वर्धक होते हैं। अतः प्रातःकालीन शिवाम्बु अधिक लाभदायक होता है। परन्तु जो शान्त, तनाव मुक्त, सामायिक- स्वाध्याय द्वारा समभाव की साधना करने वाले, ध्यान अथवा भक्ति में सदैवलीन रहते हैं, वे कभी भी अपने शिवाम्बु का प्रयोग कर सकते हैं।

                शिवाम्बु औषधि ही नहीं रसायन है। उपवास के साथ शिवाम्बु का सेवन करने से विशेष लाभ होता है। शिवाम्बु पीने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ भी खाना पीना नहीं चाहिये। आंखों में, कान में, मुंह में, एनिमा आदि के रूप में ताजा शिवाम्बु को ही उपयोग में लेना चाहिये, परन्तु त्वचा सम्बन्धी रोगों में जितना पुराना शिवाम्बु होता है उतना अधिक प्रभावशाली होता है। असाध्य रोगों में शिवाम्बु पीना, शिवाम्बु का एनिमा लेना, रोगग्रस्त निष्क्रिय भाग पर शिवाम्बु का लगाना अथवा मसाज करना, बवासीर वाले भाग को शिवाम्बु से गीला रखना लाभदायक होता है।

शिवाम्बु कब और कितना सेवन करें?

                शिवाम्बु गर्म प्रकृति का होने से शिवाम्बु पान की एक जैसी विधि का न्याय संगत नहीं हो सकती। सर्दी की मौसम में अथवा कफ प्रकृति वाले उसका अधिकाधिक प्रयोग कर सकते हैं। वर्षा की मौसम में शिवाम्बु की मात्रा सर्दी की अपेक्षा थोड़ी कम तथा गर्मी के मौसम में तथा पित्त प्रकृति वालों को शिवाम्बु का पान अपेक्षाकृत कम करना चाहिए।

                जो व्यक्ति दुव्र्यसनों से ग्रसित हैं, अथवा किसी प्रकार की दवा ले रहा है अथवा जिसका खानपान तामसिक है, उसको शिवाम्बु का अधिक सेवन करना चाहिए, ताकि थोड़े समय में ही उसके दुव्र्यसन छूट जाते हैं। दवा बंद हो जाती है तथा सात्त्विक खाने के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है। इसी प्रकार जिनके शरीर में मोटापा अथवा चर्बी ज्यादा है, उन्हें शिवाम्बु का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिये तथा जो दुबले पतले हैं, उन्हें शिवाम्बु का सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिये।

शिवाम्बु से होने वाले तात्कालिक उपचार

                शिवाम्बु उपचार करते समय यदि कुछ भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हो तो अनुभवी शिवाम्बु चिकित्सकों से ही परामर्श लेना चाहिए न कि अन्य उपचार पद्धतियों के चिकित्सकों से। हो सकता है वह प्रतिक्रिया उपचार का शुभ संकेत हो। शिवाम्बु उपचार करते समय यथा संभव हमें दुव्र्यसनों के सेवन का और उन सभी कारणों से बचना चाहिए, जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती हो। साथ ही भोजन, पानी, हवा एवं सूर्य के प्रकाश जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक सम्यक् उपयोग करना चाहिए। जिससे शिवाम्बु उपचार से विभिन्न रोगों में शीघ्र परिणाम आने लगते हैं।

  1. हिलते हुए दांतों को पुनः मजबूत करने के लिये तथा दांतों संबंधी अन्य रोगों (खड्डे भरने के अलावा) में ताजे शिवाम्बु को मुंह में भरकर दिन में तीन-चार बार पंद्रह बीस मिनट घुमाने से रोग ठीक हो जाते हैं।
  2. आंखों के सभी रोगों में, नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए, चश्में के नम्बर कम करने के लिए, रोजाना तीन-चार बार आंखों को ताजे शिवाम्बु को तीन-चार मिनट ठंडा होने के पश्चात् धोने से काफी लाभ होता है।
  3. सांप, बिच्छु अथवा शरीर में अन्य जहर फैलने पर शिवाम्बु पीने से विश का प्रभाव समाप्त हो जाता है। यदि रोगी का शिवाम्बु उपलब्ध न हों तो अन्य स्वस्थ व्यक्ति का शिवाम्बु तुरंत पिलाया जा सकता है।
  4. यदि रोगी का पेशाब बंद हो तो, अन्य स्वस्थ व्यक्ति का शिवाम्बु पिलाने से मूत्र में आया अवरोध दूर हो जाता है। उसके पश्चात् रोगी अपने स्वयं के शिवाम्बु का सेवन कर सकता है।
  5. रोगी को जहाँ तक हो, अपने शिवाम्बु का ही सेवन करना चाहिये, भले ही मधुमेह के कारण मूत्र में सुगर अथवा केंसर आदि रोगों के कारण, उसमें पस अथवा बदबू कितनी ही क्यों नहीं आती हो।
  6. उषापान करने वालों को प्रातः प्रथम शिवाम्बु का पान करना चाहिए। उसके आधा घंटें पश्चात् उषापान कर भ्रमण करने अथवा पेट का हलका व्यायाम करने से आंतों की सफाई प्रभावशाली ढंग से हो जाती है।
  7. मुँह में 20 मिनट तक शिवाम्बु रख अन्दर ही अन्दर घुमाने के साथ-साथ, आंखों को शिवाम्बु से धोने तथा कानों में शिवाम्बु डालने से आंख और कानों की कार्य क्षमता बढ़ती है।
  8. नासाग्र से स्वमूत्र पान करने से श्वसन तंत्र मजबूत होता है तथा दमा, तपेदिक आदि रोग जल्दी ठीक होते हैं।
  9. हथेली और पगथली में शिवाम्बु का मसाज करने से वहां जमें विजातीय तत्त्व दूर होने लगते हैं और व्यक्ति को अनेक रोगों से सहज राहत मिलने लगती है।
  10. श्वास की बीमारी वालों को सीने पर नियमित शिवाम्बु का मसाज करने से फेंफड़ों में जमा कफ और विजातीय अवरोधक तत्त्व दूर होने लगते हैं। फलतः श्वास रोगों में राहत मिलती है।
शिवाम्बु के प्रति जन जागरण               

                जिस घर में स्वमूत्र चिकित्सा को पारिवारिक चिकित्सा के रूप में मान्यता मिल जाती है अर्थात् सभी परिजन अपना लेते हैं, वह परिवार बड़ा भाग्यशाली होता है। उस घर में चिकित्सकीय खर्च बंद हो जाता है, उपचार हेतु समय का दुरूपयोग समाप्त हो जाता है। घर के बालक-बालिका, प्रोढ़-प्रोढ़ा-वृद्धा सभी रोग मुक्त हो दीर्घायु को प्राप्त करते हैं। आज सैकड़ों आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञ, राजनेता, फिल्म अभिनेता, शिक्षाविद् शिवाम्बु के प्रति जन जागरण कर अपने स्वास्थ्य हेतु स्वमूत्र पान कर रहे हैं।

सरकारी उपेक्षा एवं हमारा दायित्व

                भारत जैसे गरीब देश के लिए शिवाम्बु जैसी सरल, सस्ती, अहिंसक, वैज्ञानिक, प्रभावशाली, सहज, सुलभ, स्वावलम्बी पद्धति जो सबके लिए सभी स्थानों पर उपलब्ध होती है, परन्तु सही जानकारी एवं भ्रामक धारणाओं के कारण उपयोग में न ली जाए, हमारा दुर्भाग्य ही समझना चाहिए। अतः मानवतावादी दृष्टिकोण वाले सभी स्वास्थ्य प्रेमियों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि जन-जन तक शिवाम्बु सम्बन्धी जानकारी पहुँचाएँ तथा गरीब, अशिक्षित स्वास्थ्य प्रेमियों को रोग मुक्त जीवन व्यतीत करने के पुनीत सेवा कार्य में अपनी अहं भूमिका निभाए। ‘‘शिवाम्बु चिकित्सा में रोग के निदान की भी आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि शरीर में रोगों की आवश्यकतानुसार ही इसका निर्माण होता है। शिवाम्बु का सम्यक् उपयोग अपने आप में चिकित्सा है तथा आधुनिक चिकित्सा में कार्य में ली जाने वाली अनेकों दवाईयों का एक मात्र प्रभावशाली विकल्प।’’

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