क्यों पढ़े आरोग्य आपका   ?

स्वस्थ रहें या रोगी?: फैसला आपका

स्वावलम्बी अहिंसक चिकित्सा

( प्रभावशाली-मौलिक-निर्दोष-वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धतियाँ )

स्वकथन !


मेरी भावना

भावना दिन रात मेरी, सब सुखी संसार हो।
सत्य संयम शील का, व्यवहार बारम्बार हो।
धर्म के विस्तार से, संसार का उद्धार हो।
पाप का परित्याग हो, और पुण्य का संचार हो।
ज्ञान की सद् ज्योति से, अज्ञान तम का नाश हो।
धर्म के सद् आचरण से, शान्ति का आभास हो।
शान्ति सुख आनन्द का, प्रत्येक घर में वास हो,
वीर वाणी पर सभी, संसार का विश्वास हो।
रोग, भय और शोक, होवे दूर हे परमात्मा।
ज्योति से परिपूर्ण होवे, सब जगत की आत्मा।।

मानव शरीर स्वयं में परिपूर्ण

मनुष्य का शरीर दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ स्वचलित, स्वनियन्त्रित स्व-अनुशासित मशीन होती है। अच्छे स्वचलित यंत्र में खतरा उपस्थित होने पर स्वतः उसको ठीक करने की व्यवस्था होती है। अतः हमारे शरीर में रोगों से बचने की सुरक्षा व्यवस्था तथा रोग होने पर पुनः स्वस्थ बनाने की व्यवस्था न हो, यह कैसे संभव हो सकता है? वास्तव में स्वास्थ्य के लिए हमारे शरीर में, प्रकृति में और आस-पास के वातावरण में समाधान भरे पड़े हैं। परन्तु उस व्यक्ति के लिए जो अपनी असीम क्षमताओं से अपरिचित हो, जिसका चिन्तन सम्यक् न हो, जो भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों के प्रति बेखबर एवं भ्रान्त पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो, उसके लिए वे समाधान सामने होते हुए भी नजर नहीं आते हैं।

यदि हमारे शरीर के किसी भाग में कोई तीक्ष्ण वस्तु जैसे पिन, सूई, काँटा आदि चुभे तो सारे शरीर में छटपटाहट हो जाती है। आँखों में पानी आने लगता है, मुँह से चीख निकलने लगती है। शरीर की सारी इन्द्रियाँ और मन अपना कार्य रोककर क्षण भर के लिए उस स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। उस समय न तो मधुर संगीत सुनना ही अच्छा लगता है और न मनभावन सुन्दर दृश्यों को देखना। न हँसी मजाक अच्छी लगती है और न अपने प्रियजन से बातचीत अथवा अच्छे से अच्छा खाना-पीना आदि। हमारा सारा प्रयास सबसे पहले उस चुभन को दूर करने में लग जाता है। जैसे ही चुभन दूर होती है, हम राहत अनुभव करते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि चाहे चुभन हो या आंखों में कोई बाह्य कचरा चला जाए अथवा भोजन करते समय गलती से भोजन का कोई अंश भोजन नली की बजाय श्वास नली में चला जाए तो शरीर तुरन्त प्रतिक्रिया कर उस समस्या का प्राथमिकता से निवारण करता है।

जिस शरीर में इतना आपसी सहयोग, समन्वय, समर्पण, तालमेल एवं अनुशासन हो अर्थात् शरीर के किसी भाग में पीड़ा अथवा दुःख से सारा शरीर दुःखी हो तो क्या ऐसे शरीर में डाॅक्टरों द्वारा किसी भी नाम विशेष द्वारा पुकारे जाने वाले छोटे-बड़े अकेले रोग पनप सकते हैं?

उपचार से पूर्व निदान की सत्यता पर समीक्षा आवश्यक

आधुनिक चिकित्सक प्रायः मुख्य लक्षणों एवं पैथालोजिकल परीक्षणों के आधार पर रोगों का नाम बताते हैं। प्रायः शरीर के प्रत्येक अंग के विशेषज्ञ अलग-अलग होते हैं। परन्तु शरीर अविभाज्य है। अतः शरीर के किसी भाग की खराबी अथवा असंतुलन से पूरा शरीर प्रभावित होता है। प्रकृति के सर्वमान्य यिन-यांग के सिद्धान्तानुसार भी शरीर के प्रत्येक अंग का पूरक अंग होता है। जैसे हृदय का छोटी आंत, तिल्ली का आमाशय आदि। वे अंग पति-पत्नी की भांति एक दूसरे के पूरक होते हैं। अतः किसी एक अंग में रोग होने की अवस्था में उसके सहयोगी अंग पर भी उसका विशेष प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। अधिकांश चिकित्सा पद्धतियाँ प्रायः उसी अंग का उपचार करती हैं, जिनके लक्षण उनके ध्यान में आते हैं। परन्तु यदि रोग का कारण उसका पूरक अंग में हो तो बहुत प्रयास करने के बावजूद रोगों से राहत न दिला पाने के कारण उस रोग को असाध्य बतला दिया जाता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति अपने पत्नी के संक्रामक रोग के कारण तनावग्रस्त हो तो, उस व्यक्ति का तनाव तब तक दूर नहीं किया जा सकता, जब तक उसकी पत्नी रोग मुक्त नहीं होती। पति का उपचार करना विशेष लाभप्रद नहीं होता। वास्तव में चिकित्सकों द्वारा जिन लक्षणों के आधार पर रोगों का निदान और नामकरण किया जाता है, वे अकेले ही रोग नहीं होते, अपितु रोगों के परिवार के नेता होते हैं, जिन्हें सैकड़ों अप्रत्यक्ष सहायक रोगों का समर्थन प्राप्त होता है। परन्तु प्रायः चिकित्सकों का अप्रत्यक्ष रोगों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता और न वे अप्रत्यक्ष रोगों को रोग ही मानते हैं। उपचार करते समय चिकित्सक एवं रोगी का पूरा प्रयास बाह्य लक्षणों को दूर कर नामधारी रोगों से राहत पाने का ही होता है। जनतंत्र में नेता को हटाने का एक उपाय है। जिस सहयोग और समर्थन से उसका चयन होता है, उसकी ठीक विपरीत प्रक्रिया (असहयोग एवं विरोध) द्वारा उसको हटाया जा सकता है। बिना समर्थकों को अलग किये, जैसे नेता को बदलना सरल नहीं, उसी प्रकार रोग में सहयोगी रोगों की उपेक्षा कर रोग से पूर्ण रूप से मुक्त करने का दावा खोखला लगता है। ऐसा निदान और उपचार अधूरा ही होता है।

स्वावलम्बी उपचार के प्रति मेरा आकर्षण कैसे हुआ?

व्यावहारिक शिक्षा से बिजली का इंजीनियर एवं बिजली व्यवसाय से जुड़ा होने के बावजूद चंद घटनाओं के कारण स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों की ओर मेरा अत्यधिक झुकाव हुआ। वर्ष 1988 में 85 वर्ष की आयु में मेरी माताजी को पक्षाघात हुआ। मद्रास के वरिष्ठ चिकित्सकों द्वारा उनके जीवन की आशा समाप्त हो चुकी थी। चिकित्सक द्वारा निदान एवं उपचार पर मुझे मेरी शंकाओं का संतोषप्रद समाधान नहीं मिला। चुम्बक एवं एक्यूप्रेशर में मेरी सामान्य जानकारी के आधार पर किए गए उपचार से माताजी के स्वास्थ्य में न केवल चमत्कारी प्रभाव ही पड़ा, अपितु उनको ढाई वर्ष से अधिक का जीवन भी मिला।

सितम्बर 1990 में एक ट्रक दुर्घटना में मेरे चेहरे की हड्डियों का फ्रेक्चर हो गया। अहमदाबाद में शल्य चिकित्सा के पश्चात् 26 टांके आए। तीन दिन पश्चात् शल्य चिकित्सक ने 45 दिन तक दवाइयें लेने के पश्चात् टांके खुलवाने हेतु पुनः सम्पर्क करने की बात कही। चिकित्सक द्वारा उपचार हेतु ली जाने वाली दवाओं की प्रासंगिकता के बारे में संतोषप्रद शंका समाधान न होने से मैंने चुम्बक चिकित्सा की सामान्य जानकारी के आधार पर अपना उपचार किया, जिससे मुझे तत्काल लाभ मिलना प्रारम्भ हुआ। फलतः मेरा स्वावलम्बी चिकित्सा के प्रतिमनोबल बढ़ा और अपने आपको बिना दवा लिए चन्द दिनों में प्रभुकृपा से रोगमुक्त कर लिया।

अप्रेल 1991 में एक अन्य दुर्घटना में मेरे जांघ की हड्डी में 2 इंच की क्रेक आ गई, जिसको मैंने मात्र 5-7 दिनों में ही अपने उपचारों से पूर्णतः ठीक कर लिया। वर्ष 2000 में मुझे हृदयघात के कारण पाँच दिन Intesive Care Unit (ICU) में रहना पड़ा, परन्तु वहाँ भी मैंने अनावश्यक दवाओं का सेवन नहीं किया और अस्पताल से छुट्टी के पश्चात् किसी प्रकार की दवा लिए बिना अपना उपचार प्रभावशाली ढंग से स्वयं किया तथा आजतक दवाई लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उसके चंद सप्ताह पश्चात् गुजरात के पालीताणा तीर्थ की लगभग 3500 सीढ़ियाँ चढ़कर पैदल यात्रा का मनोबल बना सका। अधिक जानकारी हेतु मेरी पुस्तक ‘‘आरोग्य आपका” में ‘बिना दवा हृदय रोगों का प्रभावशाली उपचार’ का अध्ययन करें। वर्ष 2006 में मेरे बांयें कान के पर्दे में छिद्र हो गया। फलतः कान में बहुत अधिक पीब (रस्सी) आना प्रारम्भ हो गया। चिकित्सकों द्वारा उपचार हेतु विभिन्न दवाइयों का कम से कम 15 दिन उपचार लेने का परामर्श दिया। चिकित्सक द्वारा दी जाने वाली दवाइयों से उपचार की प्रांसगिकता का स्पष्टीकरण लेकर उसी मार्गदर्शन के आधार पर विकल्प के रूप में मैंने नाक में शिवाम्बु तथा कान पर नीले बल्ब की रोशनी के उपचार से मैं मात्र दो दिनों में रोग मुक्त हो गया। आजतक मुझे पुनः उस रोग का पुनः सामना नहीं करना पड़ा।

71 वर्ष की अवस्था में वर्ष 2011 में मोतियाबिन्द (Cataract) के कारण मैंने अपनी दोनों आंखों में लैंस लगवाए। उसके पश्चात् प्रातः उदित सूर्य को निहारने एवं आंखों में शिवाम्बु के प्रयोग से शल्य चिकित्सा के दो-तीन दिनों के पश्चात् आंखों में नियमित दवा डालने की आवश्यकता नहीं पड़ी एवं इस वृद्धावस्था में मुझे 55 वर्षो के पश्चात् नजदीक एवं दूर के पूर्ण रूप से चश्मे से मुक्ति मिली।

हमारे ट्रस्ट द्वारा स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों के प्रति जनसाधारण में आत्मविश्वास पैदा करने हेतु 30 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। बाजार में उपलब्ध अधिकांश स्वास्थ्य संबंधी पुस्तकों का प्रकाशन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखकर किया जाता है। स्वास्थ्य के लिए क्या आवश्यक एवं प्राथमिक है, यह प्रायः गौण होता है। हमारे ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तकें बाजार में उपलब्ध चिकित्सकों के दृष्टिकोण से हट कर लिखी गई है एवं उपर्युक्त अपवाद की श्रेणी में न आने वाली पुस्तकें हैं। सभी पुस्तकें हमारी Website: chordiahealthzone.in पर उपलब्ध है। हमारे ट्रस्ट द्वारा जनसाधारण को स्वस्थ रखने की भावना से इस Website का प्रारम्भ किया जा रहा है।

‘आरोग्य आपका’ पर खुली किताब परीक्षा का आयोजन'

वर्ष 2004-05 में मैंने अपनी स्वलिखित पुस्तक ‘‘आरोग्य आपका” पर आधारित लाखों रुपयों के प्रोत्साहन पुरस्कारों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर खुली किताब परीक्षा का आयोजन किया। सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास था। इस प्रतियोगिता में सभी स्तर के बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। सभी प्रतियोगियों ने पुस्तक का मनोयोग पूर्वक अध्ययन कर मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की एवं साथ ही पुस्तक के माध्यम से अनेक प्रतियोगियों ने स्वयं और परिजनों का सफल उपचार भी किया।

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स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियाँ अत्यधिक प्रभावशाली

गत 30 वर्ष से अधिक स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों के क्षेत्र में कार्य करने एवं उनसे प्राप्त अनुभवों के पश्चात् आज मैं दृढ़तापूर्वक कह सकता हूँ कि अनेक रोगों में स्वावलम्बी उपचार वर्तमान में उपलब्ध अन्य उपचारों से अधिक प्रभावशाली होते हैं।

  1. एक्युप्रेशर निदान, उपचार एवं रोगों की रोकथाम की बहुत ही सरल, सस्ती, स्वावलम्बी, प्रभावशाली, अहिंसक, वैज्ञानिक पद्धति है। इस पद्धति द्वारा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का जितना सरल, सहज, प्रभावशाली उपचार हो सकता है, उतना अन्य चिकित्सा पद्धतियों में प्रायः संभव नहीं होता।
  2. चुम्बक चिकित्सा शरीर से पीड़ा दूर करने, घावों को शीघ्रता से भरने, रक्त संचार ठीक रखने एवं हड्डियों को जोड़ने में अन्य चिकित्सा पद्धतियों से अधिक प्रभावशाली होती है।
  3. शिवाम्बु तो स्वास्थ्य का अमूल्य खजाना है। शिवाम्बु घर का दवाखाना है, जहाँ प्रायः सभी रोगों की दवा उपलब्ध होती है। शिवाम्बु घर का अस्पताल है जहाँ अधिकांश रोगों का प्रभावशाली उपचार होता है। शिवाम्बु घर का डाॅक्टर है, क्योंकि उसमें रोग के अनुसार दवा का परामर्श देने का चिकित्सकीय गुण होता है। घर में ही रोग निदान केन्द्र है, क्योंकि शिवाम्बु उपचार करते समय रोग के निदान हेतु परीक्षणों की आवश्यकता नहीं होती। शिवाम्बु स्वयं द्वारा स्वयं के स्वास्थ्य का सुरक्षा कवच है, क्योंकि शिवाम्बु के सेवन से वायरस प्रभावहीन हो जाते हैं। वृद्धावस्था के लक्षण समय के पूर्व प्रकट नहीं होते। बच्चों को रोग निरोधक टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती।
  4. आकस्मिक रोगों में स्वर परिवर्तन कर तुरन्त राहत पायी जा सकती है।
  5. मुस्कान एवं हास्य चिकित्सा तनाव, भय, आवेग, अधीरता जैसे मानसिक एवं हारमोन सम्बन्धी रोगों में रामबाण की तरह कार्य करती है।
  6. दाणा मैथी के स्पर्श मात्र से शरीर में जमे विजातीय पदार्थो को दूर कर रोग में शीघ्रता से आराम पाया जा सकता है।
  7. सूर्यमुखी तेल गंडूस द्वारा सरलता से रक्त शुद्धीकरण किया जाता है एवं रक्त सम्बन्धी रोगों में राहत पायी जा सकती है।
  8. नाभि को केन्द्र में लाने मात्र से पाचन सम्बन्धी रोगों को तुरन्त ठीक किया जा सकता है।
  9. पैरों एवं मेरुदण्ड को संतुलित रखने मात्र से जोड़ों के दर्द में राहत पायी जा सकती है।
  10. सुजोक बियोल मेरेडियन द्वारा सभी अंगों में प्राण ऊर्जा को संतुलित कर असाध्य रोगों में शीघ्र राहत पायी जा सकती है एवं शल्य चिकित्सा से भी बचा जा सकता है।
  11. सूर्य किरण, रंग चिकित्सा तथा मुद्रा चिकित्सा के भी विभिन्न रोगों में चमत्कारिक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। यदि ऐसी विभिन्न स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय कर उपचार किया जाए तो व्यक्ति स्वयं उपचार कर स्वस्थ हो सकता है।

वेबसाइट बनाने का उद्देश्य

गत 30 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य करते हुए हृदय, मधुमेह, दमा, स्लीप डिस्क, रक्तचाप जैसे असाध्य समझे जाने वाली अनेक रोगों का न केवल स्वयं का बहुत ही कम समय में उपचार किया अपितु अनेक रोगी मात्र मार्गदर्शन से स्वयं का उपचार स्वयं कर तुरन्त ठीक हुए। प्रत्येक रोगी को शरीर की क्षमताओं एवं प्रकृति के सनातन सिद्धान्तों पर आधारित स्वयं द्वारा स्वयं का बिना दवा उपचार की प्रभावशाली सहज, सरल, सस्ती, दुष्प्रभावों से रहित स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों को समझाना संभव नहीं। अतः चाहते हुए भी लाखों रोगी ऐसे उपचारों से वंचित रहते हैं। उपचार करते समय परावलंबन चाहे दवा का हो या डाॅक्टर का, उपकरणों का हो अथवा विविध यांत्रिक परीक्षणों का, परावलम्बन तो पराधीन ही बनाता है। अतः जब भी दूसरा कोई प्रभावशाली विकल्प हो, पराधीनता वाले उपचार से यथा संभव बचना ही श्रेयस्कर होता है। प्राणिमात्र को प्रभावशाली, स्वावलम्बी, निर्दोष, अहिंसात्मक, मौलिक, प्रकृति के सनातन सिद्धान्तों पर आधारित स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हमारे न्यास द्वारा जनहितार्थ निम्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु यह वेबसाइट उपलब्ध करायी जा रही है।

  1. सहज, सरल, सस्ती, प्रकृति के सनातन सिद्धान्तों पर आधारित पूर्णतः वैज्ञानिक, तर्क संगत, अहिंसक, प्रभावशाली, स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों से जनसाधारण को परिचित कराना।
  2. स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों के प्रति प्रजा में फैली भ्रान्त धारणाओं को दूर करना।
  3. स्वास्थ्य प्रेमियों को अच्छा स्वास्थ्य रखने हेतु मौलिक जानकारी प्रदान करने में सहयोग देना।
  4. स्वयं को स्वयं की क्षमताओं से परिचित करवा, बिना शरीर की विशेष जानकारी, स्वयं को स्वयं का चिकित्सक बनाने में सहयोग करना।
  5. अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियों का प्रचार-प्रसार करना एवं मानव मात्र को रोग मुक्त एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वावलम्बी बनाना।
  6. अहिंसक चिकित्सा पद्धतियों के सेवा भावी चिकित्सक तैयार करने में सहयोग देना।
  7. व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक अर्थात् समग्र रूप से स्वस्थ बनाने में सहयोग करना।
  8. चिकित्सा के नाम पर यथासंभव अनावश्यक प्रत्यक्ष-परोक्ष हिंसा से जनसाधारण को बचाना।
  9. चिकित्सा के नाम पर होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जनचेतना जागृत करना।

सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सभी शांत, प्रसन्न, स्वस्थ एवं रोग मुक्त हों, इसी मंगल भावना के साथ।

“ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। "
" सर्वे भद्राणि पष्यन्तु , मा कष्चिद् दुःखमाप्नुयात्।। ”

Chordia Health Zone

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