स्वावलंबी प्रभावशाली अहिंसक चिकित्सा पद्धतियों के चिंतक, लेखक, प्रशिक्षक, चिकित्सक श्री चंचलमल चोरडिया का नाम राष्ट्रीय स्तर के चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ लिया जाता है। व्यावहारिक शिक्षा से विद्युत इंजीनियर होने के कारण मानव शरीर रूपी विश्व में उपलब्ध सर्व श्रेष्ठ यंत्र को सुव्यवस्थित रखने हेतु चोरडिया जी का चिन्तन पूर्णतः मौलिक, सनातन सिद्धान्तों पर आधारित, अनुभूतिपरक, वैज्ञानिक एवं अकाट्य तर्को पर आधारित है। उनका चिन्तन न केवल सम्यक् ही है, अपितु प्राथमिकताओं के साथ-साथ समग्रता से ओत-प्रोत होने के कारण स्वास्थ्य के संबंध में उठने वाली प्रत्येक शंकाओं एवं समस्याओं का सरल एवं तर्क संगत समाधान प्रस्तुत करता है।‘स्वस्थ रहना सहज और सरल है’ यह आपका नारा है। परावलंबन दुःख का कारण है, फिर चाहे वह दवा का हो या डॉक्टर का।
चोरडिया जी कुशल व्यवसायी, सफल अभियन्ता, प्रबुद्ध चिन्तक, स्पष्ट वक्ता, प्रखर लेखक, अच्छे गायक, कर्मयोगी, धुन के धनी एवं दृढ़ मनोबल युक्त व्यक्तित्व के धनी हैं। 3.11.1941 को स्व. कल्याण मल जी चोरडिया के पुत्र रत्न के रूप में आपका जन्म जोधपुर में हुआ। 1964 में विद्युत् अभियन्ता की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् लगभग छः साल तक देश के बड़े सीमेन्ट एवं कागज उद्योगों में आपने कार्य किया। 1970 में आपने नौकरी छोड़ बिजली का व्यवसाय प्रारंभ किया। आपके सुप्रयासों से आज आपका व्यवसाय राजस्थान भर में चोरडिया इलेक्ट्रिकल्स के नाम से ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठान है।
आपका प्रयास स्वास्थ्य के मूल सिद्धान्तों का सरल भाषा में प्रस्तुतिकरण कर जनसाधारण के लिए उपयोगी बनाना है। चिकित्सा के क्षेत्र में होने वाली हिंसा को रोकने हेतु स्वावलम्बी अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियों की शोध एवं प्रचार-प्रसार में आप प्रयत्नशील हैं। जोधपुर में देश के सुविख्यात चिकित्सा के प्रशिक्षिकों द्वारा एक्युप्रेशर, चुम्बक, सूर्य किरण, रंग, शिवाम्बु, ध्यान, दूरस्थ, डाउजिंग, रत्न, पिरामिड, सुजोक एक्युप्रेशर, वास्तुशास्त्र सम्बन्धी प्रशिक्षण शिविरों को आयोजित करवाकर सारे राजस्थान में अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियों की प्रभावशालीता से जनसाधारण को परिचित कराने में आपने अभूतपूर्व योगदान दिया। आपने अभी तक स्वास्थ्य से संबंधित 30 से अधिक पुस्तकों का संपादन किया। पाठकों के अभिमत अनुसार‘‘आरोग्य आपका’’ पुस्तक को स्वास्थ्य की गीता कहा जावे तो भी कोई अतिस्योक्ति नहीं है। 2004-2005 में इस पुस्तक पर आधारित अखिल भारतीय स्वास्थ्य चेतना ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित कर स्वावलंबी चिकित्सा को जन.जन तक पहुंचाने में अहं भूमिका निभायी।आपने अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियों द्वारा स्वयं पर दुर्घटनाओं तथा रोगावस्था से मुक्ति हेतु सफल उपचार किया है।आपकी स्पष्ट मान्यता है कि जिस चिकित्सा पद्धति में उपचारस्थायी एवं दुष्प्रभावों से रहित प्रभावशाली न हों, दवाई जीवन की आवश्यकता बन जाए, वह निदान और उपचार सही नहीं हो सकता, भले ही उसको भ्रामक, लुभावने विज्ञापनों द्वारा कितना भी वैज्ञानिक और प्रभावशाली प्रचारित क्यों न किया जाता हो। आत्मविश्वास के साथ आप रोगी की शंकाओं का सम्यक् समाधान करते हैं, जिससे रोगी का आत्मविश्वास जागृत हो जाता है। आपका प्रयास रोगी को उसकी क्षमताओं से परिचित करवाकर स्वयं के द्वारा उपचार हेतु प्रेरित करने का होता है। उपचार में रोगी की भागीदारी को आप सर्वाधिक महत्व देते हैं।
आप स्वयं राष्ट्र के विख्यात अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञ एवं प्रशिक्षक हैं तथा विभिन्न असाध्य समझे जाने वाले रोगों का सरल एवं सफल उपचार करते हैं। देश के विभिन्न भागों में प्रशिक्षण एवं उपचार शिविर आयोजित कर तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी वार्ताओं द्वारा आप अहिंसात्मक चिकित्सा के प्रचार.प्रसार में पूर्ण रूपेण समर्पित हैं तथा इस हेतु आपकी हजारों वार्ताएँ आयोजित हो चुकी हैं। आपके इस कार्य हेतु 31,000 रुपये के नकद आचार्य हस्ती अहिंसा पुरस्कार का आपको जलगांव (महाराष्ट्र), मरूधरा रत्न के रू.31000/- के नकद पुरूस्कार से मुम्बई में सम्मानित किया गया। दिल्ली में अहिंसा इन्टरनेशनल द्वारा अहिंसा के क्षेत्र में विशेष योगदान देने हेतु नकदरु. 21000/- एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा आपको सम्मानित किया गया। इंडियन सोसायटी फार हैल्थ एनवायरमेंट, एज्युकेशन एण्ड रिसर्च संस्था द्वारा ISHEER से भी आप सम्मानित हो चुके हैं। इंडियन बोर्ड आफ एलटरनेटिव मेडिसिन कलकत्ता एवं नेशनल कांग्रेस आफ हैल्थ एण्ड स्प्रीच्युल साइंस के राष्ट्रीय सम्मेलनों में सुश्रुत तथा पुनः अन्य दीक्षान्त समारोह में आप राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुए है। एक्युमेगनेट हीलिंग ऐसोशियेशन इन्दौर द्वारा जैम आफ पिरामिड, इंडियन एकेडमी आफ एक्युप्रेशर साइन्स, इन्दौर द्वारा एक्युप्रेशर रत्न, एल्टरनेटिव थेरेपी फोर हैल्थ इंदौर द्वारा प्रिन्स आफ एक्युप्रेशर से आपको सम्मानित किया जा चुका है।
आप पश्चिमी राजस्थान अकाल राहत हेतु कार्यरत प्राणी मित्र संस्थान के कार्याध्यक्ष, श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ तथा महावीर इण्टरनेशनल जोधपुर के भूतपूर्व अध्यक्ष, एम.बी.एम. इंजीनियरिंग कालेज एलुमिनी एसोसियेशन तथा नेत्रहीन विकास संस्थान के संरक्षक, कल्याणमल चंचलमल चोरडिया ट्रस्ट एवं श्रीमति रतन कंवर चंचल मल चोरडिया चेरीटेबल ट्रस्ट के प्रमुख संस्थापक ट्रस्टी, इंडियन वेजीटेरियन सोसायटी-चेन्नई, World Tele-Therapy Association-Kolkata, Water of Life Foundation-Mumbai, Beauty without Cruelty -Pune, सम्यक् ज्ञान प्रचारक मण्डल-जयपुर, जीतयशा फाउण्डेशन-कलकत्ता, गांधी मूक एवं बधिर विद्यालय, निराश्रित बच्चों को आश्रय देने वाले नव जीवन संस्थान, बाल शोभागृह, महावीर विकलांग समिति, पशु क्रूरता निवारण समिति, Peoples for Animal, चक्षु सेवा समिति, जैन रिलीफ सोसायटी, दिव्य लोक संस्थान जैसी अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के आप न केवल आजीवन सदस्य ही हैं, अपितु विभिन्न पदों का सक्रियता पूर्वक दायित्व निर्वाह भी कर रहे हैं। वैकल्पिक चिकित्सा के राष्ट्रीय एवंअंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में आपने न केवल भाग लिया अपितु अपने अकाट्यतर्कपूर्ण प्रस्तुतीकरण द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में होने वाली अनावश्यकहिंसा को अनुचित बतला कर, स्वावलम्बी चिकित्साओं के प्रचार-प्रसार में अपूर्व योगदान दिया है।
आप पिछले काफी समय से स्वास्थ्य मंत्रालय एवं राष्ट्र के सर्वोच्च नेताओं को स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों को मान्यता दिलाने हेतु प्रयत्नशील है। माननीय प्रधानमंत्री जी से पत्राचार के दो पत्र यहाँ प्रेषित है।
आपका चिन्तन पूर्णतःवैज्ञानिक, सनातन सत्य पर आधारित पूर्वाग्रहों से रहित, अनेकान्त एवं समन्वय दृष्टिकोण, दृढ़ मनोबल एवं स्पष्ट समयक् तर्कों पर आधारित होता है। मेरा जो सच्चा के स्थान पर सच्चा जो सबका उसका मूल आधार होता है। आप जहाँ कहीं जाते हैं, समयानुकूल अपने प्रचार-प्रसार सामग्री एवं सद्साहित्य का वितरण एवं प्रेरणा द्वारा जन साधारण को सद् प्रवृत्तियों से जोड़ने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं। यहाँ तक कि श्मशान जैसे स्थान पर भीवैराग्यप्रद भजनों द्वारा वियोग के प्रसंगो पर मानव जीवन की क्षण भंगुरता का एहसास करवा शोक संतृप्त परिवारों को सांत्वना पहुंचाने में अहं भूमिका निभाते हैं। आपकी प्रेरणा से हजारों व्यक्ति मांसाहार छोड़ शाकाहारी, कुव्यसनों को छोड़ निव्यसनी एवं असाध्य रोगों में दवाओं और चिकित्सको की पराधीनता छोड़ स्वावलम्बी, रोगमुक्त, स्वस्थ एवं सात्त्विक जीवन जीने लगे हैं।